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मेरी क्या गलती ? ( Creature other than Human to Human)

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  मुझे मिली तीन ऋतुएं जाड़ा,गर्मी और बरसात जो मुझे चाहिए था सब कुछ था मेरे पास महत्वकांक्षा तुम्हारी ,पर दुर्गति क्यों की हमारी ? पेड़ों पर आंख पड़ी तुम्हारी, दे मारी तुमने, उन पर कुल्हाड़ी जंगल इधर समिटते गए कंक्रीट के टीले बनते गए कारखानों से निकला जहर नदियों पर टूटा बनकर कहर आधुनिकता की अंधी दौड़ तुम्हारी पीढ़ियां ख़तम हो गई है हमारी जो अब भी ना सचेत हुए तो अगली बारी होगी तुम्हारी । 

आधुनिक हवा और उसके साथी

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मैं खफा नहीं इंसान से उसकी आदत, उसके काम से सारी गलती मेरी ही तो थी क्योंकि मै ही इस आधुनिक युग में पारम्परिक थी साफ रहना, स्वस्थ रहना प्राकृतिक नियम से चलना कहां किया था मैंने किसी के साथ भेदभाव अब समय बदल गया है अब आधुनिकता की ओर निकल गया मैंने भी अपने अंदर बदलाव किया है आज मैंने भी धुंआ (smoking) पिया है CO 2  को अपने बाहों में भर, तपन महसूस की है SO 2  को आज मैंने छुआ  है CFCs, CH 4  से आज प्यार हुआ है आज PM 2.5 मेरा यार हुआ है । मै भी अब नही किसी से पीछे  क्योंकि मेरा पूरा परिवार आधुनिक हुआ है।

मरता तालाब और मै !

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देख तालाब की हालत थोड़ा मै खड़ा क्या हो गया तालाब गुस्से से बोला क्या देखता है ? ये मौत मेरी नहीं , तेरे अंत की शुरुवात है । फिर जगा मेरे अंदर का, विज्ञान विद्यार्थी देते चेतावनी मै बोला मनुष्य हूं मनुष्य धरती का हृदय फाड़ पानी निकलता हूं। हुंह जरूरत नहीं मुझे तेरी । इतना सुनते ही वो क्रोधित हो बोला अबे आंख के अंधे, दिमाग के खाली अख़बार नहीं तू पढ़ता क्या ? 2000 फीट चेन्नई में पानी मिला था क्या ? ज्यादा गहराई, भारी धातु युक्त पानी पी पाएगा क्या ? देख उसका ज्ञान मै थोड़ा अचरज में था । पर मुझे भी अपने विज्ञान के ज्ञान का गुरूर था । अबे ! नहीं धरती के गर्भ का पानी, तो क्या ? समंदर भरे पड़े है । शुद्धिकरण उसका कर, प्यास बुझा लूंगा । इतना सुनते ही वो बौखला कर बोला R O, U V तकनीकी की बात तो मत ही कर कभी जांच करा कर देख हड्डियां तेरी आधी जांच में ही टूट जाएगी । प्रतिरोधकता कितनी बची ये भी दिख जाएगी। जवाब नहीं था मेरे पास, पर डिग्री का घमंड तो था ही। चोट उसके हृदय पर करते हुए मै बोला मूर्खों से बात नहीं करता मै, डिग्री है कोई तेरे पास जो ज्ञान दे रहा है इस बार वार उसकी ...

विचारों की भंवर

उस कश्म - कश भंवर से निकल फिर खुद से बात कर सोच आस पास कौन ? खड़े है क्या वो मौन ? जन्म जब लक्ष्य है । तो मरने की बात क्यों ? हां जानता हूं मै भी, मृत्यु अटल सत्य है । दो पल है जिसकी जिंदगी, फिर उस पर बात क्यों ? जिंदगी कर्म है । मनुष्य का धर्म है । - अजय पाल सिंह

टूटना नहीं कभी

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लकड़हारे को लकड़ी काटते देखा है कभी ? कटती नहीं जब तक वो, क्या उसको रुकते देखा है कभी ? हर एक वार उसका, उसको लक्ष्य की तरफ ले जाता है समय लगता है, पर लकड़ी काट कर ही वो सांस लेता है हाथो का कड़ापन उसकी मेहनत की पहचान होगी जरूर पर बिना काटे वो लकड़ी, उसको मेहताना मिलता है क्या? माना कुछ लोग मजाक उड़ाते होंगे माना कुछ लोग व्यंग करते होंगे होंगे ना जाने ऐसे कितने लोग जो मुंह फैलाए काटने को दौड़ते होंगे अपने अंदर के कई सवाल भी मुंह उठाएं होंगे कभी कभी दिल भी, बिन आंसुओं रोता होगा चीर  दूं चिल्लाकर आसमां, ऐसा मन होता होगा बता भी नहीं सकता किसी से, दर्द अपनों से भी छुपाना होता होगा पर चलते रहना अपने से अपनी ही लड़ाई में जवाब सबको मिलेगा, समय तुम्हारा भी होगा मजाक उड़ाने वालों का फिर मुंह भी बंद होगा सारे सवाल अपने आप मौन होंगे चीखकर बोलेगी जिस दिन सफलता तुम्हारी तब तक यूं ही लड़ते रहो योद्धा की तरह अंत में जीत  होगी तुम्हारी  । - अजय पाल सिंह