टूटना नहीं कभी


लकड़हारे को लकड़ी काटते देखा है कभी ?

कटती नहीं जब तक वो, क्या उसको रुकते देखा है कभी ?
हर एक वार उसका, उसको लक्ष्य की तरफ ले जाता है
समय लगता है, पर लकड़ी काट कर ही वो सांस लेता है
हाथो का कड़ापन उसकी मेहनत की पहचान होगी जरूर
पर बिना काटे वो लकड़ी, उसको मेहताना मिलता है क्या?
माना कुछ लोग मजाक उड़ाते होंगे
माना कुछ लोग व्यंग करते होंगे
होंगे ना जाने ऐसे कितने लोग
जो मुंह फैलाए काटने को दौड़ते होंगे
अपने अंदर के कई सवाल भी मुंह उठाएं होंगे
कभी कभी दिल भी, बिन आंसुओं रोता होगा
चीर  दूं चिल्लाकर आसमां, ऐसा मन होता होगा
बता भी नहीं सकता किसी से, दर्द अपनों से भी छुपाना होता होगा
पर चलते रहना अपने से अपनी ही लड़ाई में
जवाब सबको मिलेगा, समय तुम्हारा भी होगा
मजाक उड़ाने वालों का फिर मुंह भी बंद होगा
सारे सवाल अपने आप मौन होंगे
चीखकर बोलेगी जिस दिन सफलता तुम्हारी
तब तक यूं ही लड़ते रहो योद्धा की तरह
अंत में जीत  होगी तुम्हारी  । - अजय पाल सिंह

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