मरता तालाब और मै !


देख तालाब की हालत थोड़ा मै खड़ा क्या हो गया
तालाब गुस्से से बोला क्या देखता है ?
ये मौत मेरी नहीं , तेरे अंत की शुरुवात है ।
फिर जगा मेरे अंदर का, विज्ञान विद्यार्थी
देते चेतावनी मै बोला
मनुष्य हूं मनुष्य
धरती का हृदय फाड़ पानी निकलता हूं।
हुंह जरूरत नहीं मुझे तेरी ।
इतना सुनते ही वो क्रोधित हो बोला
अबे आंख के अंधे, दिमाग के खाली
अख़बार नहीं तू पढ़ता क्या ?
2000 फीट चेन्नई में पानी मिला था क्या ?
ज्यादा गहराई, भारी धातु युक्त पानी पी पाएगा क्या ?
देख उसका ज्ञान मै थोड़ा अचरज में था ।
पर मुझे भी अपने विज्ञान के ज्ञान का गुरूर था ।
अबे ! नहीं धरती के गर्भ का पानी, तो क्या ?
समंदर भरे पड़े है ।
शुद्धिकरण उसका कर, प्यास बुझा लूंगा ।
इतना सुनते ही वो बौखला कर बोला
R O, U V तकनीकी की बात तो मत ही कर
कभी जांच करा कर देख
हड्डियां तेरी आधी जांच में ही टूट जाएगी ।
प्रतिरोधकता कितनी बची ये भी दिख जाएगी।
जवाब नहीं था मेरे पास, पर डिग्री का घमंड तो था ही।
चोट उसके हृदय पर करते हुए मै बोला
मूर्खों से बात नहीं करता मै, डिग्री है कोई तेरे पास जो ज्ञान दे रहा है
इस बार वार उसकी दक्षता पर था, फिर वो चुप कैसे रहता
वो क्रोध में चिल्लाते हुए बोला
हां नहीं है डिग्री मेरे पास तो क्या?
तेरे बाबा, पिता जी की प्यास नहीं बुझी ?
तेरे बाबा, पिता जी ने संभाला मुझे तभी तेरी भी प्यास बुझाई है
अब फैसला तेरा, तुझे ही करना
अपने बच्चो के लिए मुझे मारना या जीवित रखना ?
इतना कहकर वो शांत हो गया ।
अपनी बची जिंदगी की अंतिम सांसे गिनने लगा ।
झकझोर उसकी बातों ने मुझे ऐसे दिया,
जैसे प्रलय के सामने मैं हूं खड़ा
मेरे भूत के कृत्य, सब सामने आने लग गए
भरी टंकी से वो पानी गिरता दिख गया ।
साफ जो झाड़ू से हो जाता,उस पर पानी बह गया।
लोटा भरने के लिए, सबमर्सिबल  चल गया।
तालाबों की लाशों पर, खड़ी वो इमारतें
आशियाना अपना फार्म हाउस
कूड़े - कचरे से घुटता उनका दम
सारे भूत के कृत्य, भयावाह भविष्य दिखाने लगे ।

अब अपने कृत्यों का सुधार करना
बूंद बूंद पानी को रखना
अब यही मेरा ध्येय है ।



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