संदेश

सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतीय भाषाओं की व्यथा

मै भारत की भाषा हूं मैं अपनी अंतिम सांसे ले रही हूं कई मेरी सहेलियां प्रायः विलुप्त हो चुकी मिला उनको भी संरक्षण का अधिकार था संविधान का अनुच्छेद* और उच्चतम न्यायालय था । उच्चतम न्यायालय, जिससे न्याय की आशा थी सुना था, संरक्षक है वो संविधान का, मेरे मौलिक अधिकार का पर वहीं कुचलता* मुझे  रोज है। मेरी जगह ही नहीं उसकी दलीलों, उसके प्रांगण में रखो अपना संविधान, अपना न्यायालय और अपना किया हुआ, एक दिन का यह अहसान।                                                              - अजय *अनुच्छेद - ३५१ *उच्चतम न्यायालय में केवल अंग्रेजी में ही दलीलें दे सकते है, किसी भारतीय भाषा में नही ।                 ...

सनातन दर्शन

चित्र
 मै पत्थर पूजूँ या पूजूँ पहाड़ नदी पूजूँ या पूजूँ समुद्र विशाल तुलसी पूजूँ या पूजूँ वट वृक्ष या मदार खेत पूजूँ या पूजूँ खलिहान या चरवाहगार मेरे इन कार्यों से किसकी होती है हानि ? जो करते हो मेरी पद्धतियों पर वार हर बार मैंने कब बॉम्ब फोड़ा किसी को अपने जैसा बनाने को ? मैंने कब निर्दोषों को गोली से भूना अपने को बड़ा बताने को ? मेरे किस ग्रंथ में, मेरी पद्धतियों को न मानने पर मारने को लिखा है ? फिर भी हर बार मानसिक गुलामों, तुम्हारा चेहरा दोगला क्यों दिखा है ? जो हर बात पर मुझको अपनी मानसिक गुलामी की डिग्री का ज्ञान देते  हो  क्यों नहीं फिर उपनिषद, कुरान, बाइबल एक बार पढ़कर देखते हो बिना पढ़े इनको, सबको एक समान बोल देते हो  अपनी मूर्खता में तुम, हीरे को कीचड़ से तौल देते हो  मै प्रकृति का उपासक हूं, प्रकृति का दोहन नही, उसके  साथ रहता हूं  जो भी दिया उसने मुझे, पूजा अर्चन कर उसका आभार प्रकट करता हूं ।               - अजय