सनातन दर्शन


 मै पत्थर पूजूँ या पूजूँ पहाड़

नदी पूजूँ या पूजूँ समुद्र विशाल

तुलसी पूजूँ या पूजूँ वट वृक्ष या मदार

खेत पूजूँ या पूजूँ खलिहान या चरवाहगार



मेरे इन कार्यों से किसकी होती है हानि ?



जो करते हो मेरी पद्धतियों पर वार हर बार



मैंने कब बॉम्ब फोड़ा किसी को अपने जैसा बनाने को ?

मैंने कब निर्दोषों को गोली से भूना अपने को बड़ा बताने को ?

मेरे किस ग्रंथ में, मेरी पद्धतियों को न मानने पर मारने को लिखा है ?

फिर भी हर बार मानसिक गुलामों, तुम्हारा चेहरा दोगला क्यों दिखा है ?

जो हर बात पर मुझको अपनी मानसिक गुलामी की डिग्री का ज्ञान देते  हो 

क्यों नहीं फिर उपनिषद, कुरान, बाइबल एक बार पढ़कर देखते हो

बिना पढ़े इनको, सबको एक समान बोल देते हो 

अपनी मूर्खता में तुम, हीरे को कीचड़ से तौल देते हो 

मै प्रकृति का उपासक हूं, प्रकृति का दोहन नही, उसके  साथ रहता हूं 

जो भी दिया उसने मुझे, पूजा अर्चन कर उसका आभार प्रकट करता हूं । 

             - अजय





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